भारत में किसानों की स्थिति पर निबंध हिंदी | Essay On The Condition of Farmers in India

भारत में किसानों की स्थिति पर निबंध हिंदी | Essay On The Condition of Farmers in India

भारत में किसानों की स्थिति भारत कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की अधिकांश जनता गाँवों में रहती है। यह जनता कृषि-कार्य करके अपना ही नहीं, अपने देश का भी भरण-पोषण करती है। भारत में लगभग सात लाख गाँव हैं और इन गाँवों में अधिकांश किसान ही बसते हैं। यही भारत के अन्नदाता हैं। यदि भारत को उन्नतिशील और सबल राष्ट्र बनाना है तो पहले किसानों को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाना होगा। किसानों की उपेक्षा करके तथा उन्हें दीनावस्था में रखकर भारत को कभी समृद्ध और ऐश्‍वर्यशाली नहीं बनाया जा सकता।

भारतीय किसान साल भर मेहनत करता है, अन्न पैदा करता है तथा देशवासियों को खाद्यान्न प्रदान करता है; किंतु बदले में उसे मिलती है उपेक्षा। वह अन्नदाता होते हुए भी स्वयं भूखा और अधनंगा ही रहता है। वास्तव में, भारतीय किसान दीनता की सजीव प्रतिमा है। उसके पैरों में जूते नहीं, शरीर पर कपड़े नहीं, चेहरे पर रौनक नहीं तथा शरीर में शक्ति भी नहीं होती। अधिकांश भारतीय किसान जीवित नर-कंकाल सदृश दिखाई पड़ते हैं।

आज का भारतीय किसान संसार के अन्य देशों के किसानों की अपेक्षा बहुत पिछड़ा हुआ है। इसका मूल कारण है—कृषि की अवैज्ञानिक रीति। यद्यपि संसार में विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है तथापि हमारे देश का अधिकतर किसान आज भी पारंपरिक हल-बैल लेकर खेती करता है। सिंचाई के साधन भी उसके पास नहीं हैं। उसे अपनी खेती की सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। तुलनात्मक रूप से वह अन्य देशों के किसानों की अपेक्षा मेहनत भी अधिक करता है, फिर भी अन्न कम ही उत्पन्न कर पाता है। यदि भारतीय किसान भी खेती के नए वैज्ञानिक तरीकों को अपना लें तो उन्हें भी कृषि-कार्य में अभूतपूर्व सफलता मिलेगी। इससे वे अपना जीवन-स्तर ऊँचा उठा सकेंगे।

भारतीय किसान की हीनावस्था का दूसरा कारण है—अशिक्षा। अशिक्षा के कारण ही भारतीय किसान सामाजिक कुरीतियों, कुसंस्कारों में बुरी तरह जकड़े हुए हैं और पुरानी रूढ़ियों को तोड़ना पाप समझते हैं। फलस्वरूप शादी-विवाह, जन्म-मरण के अवसर पर भी झूठी मान-प्रतिष्ठा और लोक-लज्जा के कारण उधार लेकर भी भोज आदि पर खूब खर्च करते हैं और सदैव कर्ज में डूबे रहते हैं। अंतत: कर्ज में ही मर जाते हैं। यही उनका वास्तविक जीवन है और नियति भी।

भारतीय किसान खेती के अतिरिक्त अन्य उद्योग-धंधे नहीं अपनाते। फलस्वरूप खाली समय को वे व्यर्थ ही व्यतीत कर देते हैं। इससे भी उन्हें आर्थिक हानि होती है।

सरकार को यदि किसानों के जीवन में सुधार लाना है तो सर्वप्रथम उन्हें शिक्षित करना चाहिए। गाँव-गाँव में शिक्षा का प्रसार करके अविद्या का नाश करना चाहिए। किसानों की शिक्षा के लिए रात्रि-पाठशालाएँ तथा प्रौढ़-पाठशालाएँ खोलनी चाहिए, जहाँ कृषि-कार्य से छुट्टी पाकर कृषक विद्या प्राप्त कर सकें। शिक्षा के द्वारा ही किसान समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में सक्षम हो सकते हैं।

किसानों को कृषि के वैज्ञानिक तरीकों से परिचित कराना चाहिए। उन्हें उचित मूल्य पर नए ढंग के औजार तथा बीज एवं खाद आदि उपलब्ध कराए जाने चाहिए। किसानों के लिए सिंचाई के साधन भी जुटाने की चेष्टा करनी चाहिए, जिससे वे केवल वर्षा पर ही निर्भर न रहें।

गाँव-गाँव में सरकारी समितियाँ खुलनी चाहिए, जो किसानों को अच्छे बीज तथा उचित ऋण देकर उन्हें सूदखोरों से बचाएँ। भारतीय किसान के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने के लिए कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। किसानों को कपड़ा बुनने, रस्सी बनाने, टोकरी बनाने, पशु-पालन तथा अन्य उद्योग-धंधों की शिक्षा मिलनी चाहिए, जिससे वे अपने खाली समय का सदुपयोग करके अपनी आर्थिक उन्नति कर सकें।

भारत में किसानों की स्थिति पर निबंध

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