जल प्रदूषण पर निबंध – Essay on Water Pollution in Hindi
जल हमारे जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक है। मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षियों के लिए भी जल जीवन का आधार है। कोई भी जीव बिना जल के जीवित नहीं रह सकता। भोजन करने के बाद अथवा किसी काम को करने के बाद मानव-शरीर में गरमी बढ़ जाती है। उस गरमी की तृप्ति जल से ही होती है। मानव के प्रत्येक कार्य में जल की सर्वाधिक उपयोगिता है।
जिस क्षेत्र में हवा और पानी दूषित हो जाते हैं, वहाँ जीवधारियों का जीवन संकट में पड़ जाता है।
बीसवीं शताब्दी में मानव-सभ्यता और विज्ञान-प्रौद्योगिकी का बड़ी तेजी से विकास हुआ। बेशक, मानव जीवन इनसे उन्नत और सुखकर हुआ है, वहीं काफी हानि भी हुई है। आज वायु-जल-आकाश तीनों का अंधाधुंध और अनियंत्रित दोहन हुआ है। इस कारण मानव-अस्तित्व की रक्षा का प्रश्न हमारे सामने मुँह बाए खड़ा है।
गंगा भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है। वह स्वर्गलोक की यात्रा करानेवाली नदी मानी जाती है। गंगा अनेक पापों को धोनेवाली नदी मानी जाती है। वही जीवनदायी गंगा आज कल-कारखानों के जहरीले कूड़े-कचरे से प्रदूषित हो गई है।
भारत सरकार ने गंगा की सफाई के लिए व्यापक कार्यक्रम भी चला रखा है, स्व. प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की अध्यक्षता में केंद्रीय गंगा प्राधिकरण का गठन भी हुआ, किंतु अभी उसकी निर्मलता लौटी नहीं है। यही हाल अन्य नदियों का भी है।
हमारे अवैज्ञानिक रहन-सहन के फलस्वरूप जलाशयों में बहुत प्रदूषण है। प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि उनमें स्नान करने तथा इनका जल प्रयोग में लाने से चर्म रोग एवं लकवा जैसी खतरनाक बीमारियों का शिकार होना पड़ जाता है।
बावड़ियों का चलन लगभग समाप्त ही हो चुका है। देश के हर गाँव में कूप-जल का प्रयोग अनादि-काल से होता रहा है, परंतु कई इलाकों में कुओं में घातक प्रदूषित तत्त्व पाए जाते हैं।
जल मुख्य रूप से निम्नलिखित कारणों से दूषित हो जाता है –
- जल के स्थिर रहने से,
- जल में नगर की गंदी नालियों और नालों का जल मिलने से,
- जल में विभिन्न प्रकार के खनिज-लवणों के मिलने से,
- जल में छूत आदि रोगों के कीटाणुओं के मिलने से,
- ताल-तलैयों के जल में साबुन, शैंपू आदि से नहाने तथा कपड़े धोने से,
- जल-स्रोतों में कारखानों व फैक्टरियों आदि से रसायनों का स्राव होने से,
- नदी, कुओं तथा अन्य जल-स्रोतों के पास ही स्नान करने, कपड़े धोने, जूठे बरतनों को साफ करने से।
- तालाबों में स्नान करने तथा उनमें मल-मूत्र बहाने से,
- कल-कारखानों से निकला कूड़ा-कचरा तथा रासायनिक अवशिष्ट पदार्थों को जल-स्रोतों में गिराने से।
- भारत में लगभग १,७०० ऐसे उद्योग हैं, जिनके लिए व्यर्थ जल-उपचार की आवश्यकता होती है।
मनुष्य के शरीर में जल की मात्रा लगभग ७० प्रतिशत होती है। यह वह जल है, जो हमें प्रकृति से मिलता है। इसे चार भागों में बाँटा गया है-
- पहले वर्ग के अंतर्गत ‘वर्षा का जल’ आता है।
- दूसरे वर्ग में ‘नदी का जल’ आता है।
- तीसरे वर्ग के अंतर्गत ‘कुएँ’ अथवा ‘सोते’ (ताल-तलैया) का जल आता है।
- चौथे वर्ग के अंतर्गत ‘समुद्र का जल’ शामिल है।
निम्नलिखित उपायों के द्वारा जल-प्रदूषण को रोका जा सकता है –
- समय-समय पर कुओं में लाल दवा का छिड़काव होना चाहिए।
- कुओं को जाल आदि के द्वारा ढक देना चाहिए, इससे कूड़ा-करकट और गंदगी कुएँ में नहीं जा सकती।
- आपको जब पता चल जाए कि जल प्रदूषित है तो सबसे पहले उसे उबाल लें, फिर उसका सेवन करें।
- गंदे जल को स्वच्छ रखने के लिए फिटकरी का इस्तेमाल करें। जल की मात्रा के अनुसार ही फिटकरी का प्रयोग करें। इससे जल में जितनी तरह की गंदगी होगी, सबकी सब घड़े के तल में नीचे बैठ जाएगी।
- जल-संग्रह की जानेवाली टंकियों तथा हौज को समय-समय पर साफ किया जाना चाहिए।
- औद्योगिक इकाइयों में ‘ट्रीटमेंट प्लांट’ लगाना अनिवार्य कर देना चाहिए। इसका तत्परता से पालन न करनेवाले उद्योगों पर दंडात्मक काररवाई की जानी चाहिए।
- कूड़े-कचरे एवं मल-मूत्र को नदी में न बहाकर नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल करके उनसे ऊर्जा पैदा की जाए और उससे खाद बनाई जाए।
- अत्यधिक प्रदूषण फैलानेवाले कल-कारखानों को लाइसेंस न दिए जाएँ।
- नदियों, तालाबों, ताल-तलैयों एवं कुओं में मेढकों, कछुओं आदि को मारने पर प्रतिबंध लगाया जाए।
- किसी भी प्रकार से जल को दूषित करनेवालों के विरुद्ध कठोर काररवाई की जाए।
आगे पढ़ें: