वायु प्रदूषण पर निबंध

वायु प्रदूषण पर निबंध – Essay on Air Pollution in Hindi

वायु हमारे जीवन का आधार है। वायु के बिना हम एक पल भी जीवित नहीं रह सकते। अफसोस है कि आज का मानव अपने जीवन के लिए परमावश्यक हवा को अपने ही हाथों दूषित कर रहा है।

वायु को जहरीला बनाने के लिए कल-कारखाने विशेष रूप से उत्तरदायी हैं। कल-कारखानों से निकलनेवाला विषैला धुआँ वायुमंडल में जाकर अपना जहर घोल देता है। इस कारण आस-पास का वातावरण भी प्रदूषित हो जाता है। इनके अतिरिक्त हवाई जहाजों, ट्रक, बस, कारों, रेलगाड़ियों आदि से निकलनेवाला धुआँ भी वातावरण को दूषित करता है। हालाँकि इनका निर्माण मानव के श्रम और समय की बचत के लिए किया गया है।

संसार में जीवन से बढ़कर मूल्यवान् कोई चीज नहीं हो सकती। यदि ये सारी सुविधाएँ हमारे अस्तित्व पर प्रश्‍न चिह्न लगा दें तो प्रगति की अंधी दौड़ का महत्त्व क्या रह जाता है! इसके लिए औद्योगिक क्षेत्र को ही पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं होगा। मानव समाज में अनेक वर्ग हैं। वे भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।

वायु-प्रदूषण के कारण

कोयला तथा अन्य खनिज ईंधन जब भट्ठियों, कारखानों, बिजलीघरों, मोटरगाड़ियों और रेलगाड़ियों में इस्तेमाल होते हैं तब कार्बन-डाइऑक्साइड व सल्फर-डाइऑक्साइड की अधिक मात्रा वायु में पहुँचती है। मोटरगाड़ियों से अधूरा जला हुआ खनिज ईंधन भी वायुमंडल में पहुँचता है।

दरअसल कार्बन-डाइऑक्साइड, सल्फर-डाइऑक्साइड, कार्बन-मोनो ऑक्साइड, धूल तथा अन्य यौगिकों के सूक्ष्म कण प्रदूषण के रूप में हवा में मिल जाते हैं। इस दृष्टि से मोटरगाड़ियों को ‘सबसे बड़ा प्रदूषणकारी’ माना गया है।

औद्योगिक अवशिष्ट – महानगरों में औद्योगिक क्षेत्र तथा बड़ी संख्या में कल-कारखाने हैं। इन कारखानों में गंधक का अम्ल, हाइड्रोजन सल्फाइड, सीसा, पारा तथा अन्य रसायन उपयोग में लाए जाते हैं। इनमें रासायनिक कारखाने, तेल-शोधक संयंत्र, उर्वरक, सीमेंट, चीनी, काँच, कागज इत्यादि के कारखाने शामिल हैं। इन कारखानों से निकलनेवाले प्रदूषण कार्बन-मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, विभिन्न प्रकार के हाइड्रो-कार्बन, धातु-कण, विभिन्न फ्लोराइड, कभी-कभी रेडियो-सक्रिय पदार्थों के कण, कोयले तथा तरल ईंधन के अज्वलनशील अंश वायुमंडल में प्रदूषक के रूप में पहुँचते रहते हैं।

धातुकर्मी प्रक्रम – विभिन्न धातुकर्मी प्रक्रमों से बड़ी मात्रा में धूल-धुआँ निकलते हैं। उनमें सीसा, क्रोमियम, बेरीलियम, निकिल, वैनेडियम इत्यादि वायु-प्रदूषक उपस्थित होते हैं। इन शोध-प्रक्रमों से जस्ता, ताँबा, सीसा इत्यादि के कण भी वायुमंडल में पहुँचते रहते हैं।

कृषि रसायन – कीटों और बीमारियों से खेतों में लहलहाती फसलों की रक्षा के लिए हमारे किसान तरह-तरह की कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करते हैं। ये दवाएँ हैं – कार्बनिक, फॉस्फेट, सीसा आदि। ये रसायन वायु में जहर घोलने का काम करते हैं।

रेडियो विकिरण – परमाणु ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अनेक देश परमाणु विस्फोट कर चुके हैं। इन देशों में परमाणु भट्ठियों का निर्माण हुआ है। इससे कुछ वायु-प्रदूषक वायु में मिल जाते हैं। इनमें यूरेनियम, बेरीलियम क्लोराइड, आयोडीन, ऑर्गन, स्ट्रॉसियम, सीजियम कार्बन इत्यादि हैं।

वृक्षों तथा वनों का काटा जाना – पेड़-पौधे, वृक्ष-लताएँ पर्यावरण को शुद्ध करने के प्राकृतिक साधन हैं। गृह-निर्माण, इमारती लकड़ी, फर्नीचर, कागज उद्योग तथा जलावन आदि के लिए वृक्षों की अंधाधुुंध व अनियमित कटाई करने से वायु प्रदूषण में तेजी से वृद्धि हो रही है। इससे मानसून भी प्रभावित होता है। समय से वर्षा नहीं होती। अतिवृष्टि तथा सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

वायु-प्रदूषण का जन-जीवन पर प्रभाव

वायु-प्रदूषण का मानव-जीवन पर जो प्रभाव पड़ता है, वह इस प्रकार है – सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन-डाइऑक्साइड गैसें वर्षा के जल में घुलकर ‘एसिड रेन’ बनाती हैं। एसिड रेन का अर्थ है—तेजाबी या अम्लीय वर्षा। इस ‘तेजाबी बारिश’ में कार्बनिक अम्ल और सल्फ्यूरिक अम्ल का अत्यधिक प्रभाव होता है।

इस प्रकार जब ये गैसें श्‍वसन-क्रिया के द्वारा फेफड़ों में प्रवेश करती हैं तब नमी सोखकर अम्ल बनाती हैं। इनसे फेफड़ों और श्‍वसन-नलिकाओं में घाव हो जाते हैं। इतना ही नहीं, इनमें रोगाणु-युक्त धूल के कण फँसकर फेफड़ों की बीमारियों को जन्म देते हैं। जब ये गैसें पौधों की पत्तियों तक पहुँचती हैं तो पत्तियों के ‘क्लोरोफिल’ को नष्ट कर देती हैं। पौधों में पत्तियों का जो हरा रंग होता है, वह ‘क्लोरोफिल’ की उपस्थिति के कारण ही होता है। यह क्लोरोफिल ही पौधों के लिए भोजन तैयार करता है।

‘ओजोन’ की उपस्थिति से पेड़-पौधों की पत्तियाँ अधिक शीघ्रता से श्‍वसन-क्रिया करने लगती हैं। इस कारण अनुपात में भोजन की आपूर्ति नहीं हो पाती। पत्तियाँ भोजन के अभाव में नष्ट होने लगती हैं। यही कारण है कि इनसे प्रकाश-संश्लेषण नहीं हो पाता। इससे वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है।

मोटरगाड़ियों, औद्योगिक संयंत्रों, घरेलू चूल्हों तथा धूम्रपान से कार्बन-मोनोऑक्साइड तथा कार्बन-डाइऑक्साइड वायु में मिल जाती हैं। इस कारण श्‍वसन-क्रिया में रक्त में ‘हीमोग्लोबिन’ के साथ मिलकर ऑक्सीजन को वहीं रोक देती है। फलत: हृदय रक्त-संचार तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। ‘हीमोग्लोबिन’ रक्त का आधार होता है। अगर ये जहरीली गैसें अधिक देर तक श्‍वास के साथ फेफड़ों में जाती रहें तो मृत्यु भी संभव है।

अवशिष्ट पदार्थों के जलने, रासायनिक उद्योगों की चिमनियों तथा पेट्रोलियम के जलने से प्राप्त नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा कुछ कार्बनिक गैसें प्रकाश की उपस्थिति में ‘ओजोन’ तथा अन्य प्रदूषकों में बदल जाती हैं। इसके दुष्प्रभाव से आँखों से पानी निकलने लगता है, श्‍वास लेने में भी कठिनाई महसूस होती है।

वायुमंडल में कार्बन-डाइऑक्साइड की अधिकता से श्‍वसन में बाधा पड़ती है। पृथ्वी के धरातल के सामान्य से अधिक गरम हो जाने की आशंका उत्पन्न हो जाती है। नाइट्स ऑक्साइड की उपस्थिति से फेफड़ों, हृदय तथा आँख के रोगों में वृद्धि होती है। सीसे तथा कैडमियम के सूक्ष्म कण वायु में मिलकर विष का काम करते हैं। लोहे के अयस्क तथा सिलिका के कण फेफड़ों की बीमारियों को जन्म देते हैं।

रेडियोधर्मी विकिरणों से हड्डियों में कैल्सियम के स्थान पर स्ट्रॉशियम संचित हो जाते हैं। इसी तरह मांसपेशियों में पोटैशियम के स्थान पर कई खतरनाक तत्त्व इकट्ठे हो जाते हैं।

वायु-प्रदूषण की रोकथाम

वायु-प्रदूषण की रोकथाम उन स्थानों पर अधिक सरलता के साथ की जा सकती है, जहाँ से वायु में प्रदूषण उत्पन्न होता है। आजकल कुछ ऐसे प्रदूषण-नियंत्रक उपकरण उपलब्ध हैं, जिनसे प्रदूषण को रोका जा सकता है। विद्युत् स्थैटिक अवक्षेपक, फिल्टर आदि ऐसे उपकरण हैं, जिन्हें औद्योगिक संयंत्रों में लगाकर वायु को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।

वर्तमान में वायु-प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए निम्‍नलिखित उपाय संभव हैं:

  • सल्फर-डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक ईंधनों में से गंधक को निकाल देने से अथवा परंपरागत ईंधनों को न जलाकर आधुनिक ईंधनों का उपयोग करके। आधुनिक ईंधनों में प्राकृतिक गैस, विद्युत् भट्ठियाँ इत्यादि शामिल हैं।
  • मोटरगाड़ियों से निकलनेवाले प्रदूषकों को ‘उत्प्रेरक परिवर्तक’ यंत्र लगाकर किया जा सकता है।
  • ऊँची चिमनियाँ लगाकर पृथ्वी के धरातल पर प्रदूषक तत्त्वों को एकत्र होने से रोका जा सकता है।
  • औद्योगिक संयंत्रों को आबादी से दूर स्थापित करके तथा प्रदूषण-निवारक संयंत्र लगाकर वायु-प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है।
  • खाली और बेकार भूमि में अधिक संख्या में वृक्षारोपण कर तथा औद्योगिक क्षेत्रों में हरित पट्टी बनाकर काफी हद तक वायु-प्रदूषण को रोका जा सकता है। वैज्ञानिकों के मतानुसार यदि जनसंख्या का २३ प्रतिशत वनक्षेत्र हो तो वायु-प्रदूषण से हानि नहीं पहुँचती।

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