हमारा शारीरिक विकास पर निबंध

हमारा शारीरिक विकास पर निबंध – Essay on our Physical Development in Hindi

बच्चा जन्म लेता है, उसके साथ ही उसका विकास होना शुरू हो जाता है। शुरू-शुरू में बच्चे के शरीर का विकास बहुत तेजी से होता है। जब बच्चा कुछ बड़ा होता है, फिर उसका मानसिक विकास होता है।

अब बच्चा बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करता है। किशोरावस्था में शरीर का विकास बड़ी तेजी से होता है। इसको माता-पिता और बच्चा स्वयं भी देख व महसूस कर सकता है। विकास की अवस्था से गुजरते हुए किशोर असमंजस की स्थिति में पड़ जाता है।

किशोरावस्था नाजुक अवस्था होती है। इसमें उसके बहक जाने की ज्यादा संभावनाएँ रहती हैं। यह समय माता-पिता और स्वयं किशोर के लिए बड़ी सावधानी बरतने का समय होता है। किशोरावस्था में पाठशाला के लिए भी सावधानी का समय होता है। इसी समय बच्चे के भविष्य की नींव रखी जाती है। किशोर-अवस्था ही उसके जीवन का आधार होती है।

फिर आती है युवावस्था। युवावस्था में विकास धीमी गति से होता है और धीरे-धीरे यह मंद पड़ जाता है।

इसके बाद व्यक्ति वृद्धावस्था में प्रवेश करता है। इसमें विकास-प्रक्रिया पूरी तरह से समाप्त हो जाती है, शरीर का पतन होने लगता है। अंत में शरीर क्षीण होने लगता है और व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

वृद्धि और विकास एक सतत एवं निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है। यह जन्म से मृत्यु तक चलती रहती है। कभी तेज तो कभी मंद गति से शरीर का विकास होता रहता है।

सभी बच्चों का शारीरिक विकास एक जैसा नहीं होता।

बच्चों के विकास के ये तीन आधार माने गए हैं –

  1. पैतृक आधार
  2. वातावरण का आधार
  3. अच्छे स्वास्थ्य का आधार

प्राय: देखा गया है कि जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही उनके बच्चे भी होते हैं। लंबे माता-पिता की संतानें प्राय: लंबी होती हैं। छोटे कद के माता-पिता की संतानें प्राय: ठिगनी होती हैं। कुछ मामलोें में यह अपवाद भी देखा गया है।

बच्चे को रोगों से रक्षा करने की शक्ति माता-पिता से मिलती है। अनेक बीमारियाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती हैं। आमतौर पर बच्चों का स्वभाव भी माता-पिता जैसा होता है। बच्चे पर माता-पिता के स्वभाव का गहरा प्रभाव पड़ता है।

शारीरिक विकास और वृद्धि को वातावरण काफी हद तक प्रभावित करता है। गंदी बस्तियों में रहनेवाले व्यक्तियों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। कल-कारखानों के पास रहनेवाले लोगों की भी यही स्थिति रहती है। उनके बच्चों का शारीरिक विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है।

इसके विपरीत, गाँव में रहनेवाले लोगों की स्थिति है। गाँव के बच्चों का स्वास्थ्य बहुत अच्छा होता है। उनका शरीर शक्तिशाली, बलवान् तथा हृष्ट-पुष्ट होता है। उनकी मांसपेशियाँ दृढ़ होती हैं। वे काफी मजबूत होते हैं। उनमें कार्य करने की क्षमता अधिक होती है।

रोगों के कीटाणु कमजोर लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। अत: वातावरण को साफ-सुथरा बनाने की आवश्यकता है। गंदगीवाले इलाकों और झुग्गी-झोंपड़ी वाले क्षेत्रों में सफाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इससे वातावरण बच्चे के विकास और वृद्धि में मददगार बन सकता है।

उत्तम स्वास्थ्य सबसे बड़ा खजाना है। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो उसी अनुपात में शरीर का विकास भी होगा। यदि स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो विकास भी ठीक ढंग से नहीं हो सकता।

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