छात्रावास का जीवन पर निबंध – Essay on Hostel Life in Hindi
एक युग था, जब गुरुकुल की शिक्षण-पद्धति प्रचलन में थी। विद्यार्थी पच्चीस वर्ष तक की अवस्था गुरुकुलों में विद्या-प्राप्ति के लिए बिताता था। गुरु का आश्रम ही उसके लिए सबकुछ होता था।
गुरुकुल से सब विद्याओं में पारंगत होकर वह गृहस्थ जीवन में प्रवेश पाता था। आज उसी परंपरा का निर्वाह छात्रावासों की प्रतिष्ठा करके किया जा रहा है। विद्यार्थी विद्यालय में पढ़ता और छात्रावास में रहता है।
छात्रावास वास्तव में विद्यालय के ही एक अंग होते हैं। इन छात्रावासों में विद्यार्थियों को अनेक सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।
छात्रावास के जीवन के बहुत लाभ हैं। कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं –
१. छात्रावास में रहनेवाला विद्यार्थी संयमित जीवन व्यतीत करने का अभ्यस्त हो जाता है। वहाँ उसके शारीरिक और मानसिक विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है। नियत समय पर भोजन, नियत समय पर व्यायाम तथा अध्ययन का विधान होता है। यहाँ पर समय का दुरुपयोग नहीं होता।
२. अध्ययन की सुविधाओं के कारण उसका मुख्य ध्येय विद्योपार्जन होता है। यहाँ विद्यार्थी का पाठ्यक्रम अधूरा नहीं रह पाता। इसके अतिरिक्त वह छात्रावास में आयोजित व्याख्यानों व गोष्ठियों से अपना बौद्धिक विकास करता है। वाचनालय में आनेवाली पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा उसके ज्ञान-भंडार में वृद्धि होती है।
३. उसके चरित्र का समुचित विकास होता है। चारित्रिक गुणों, जैसे समय का सदुपयोग, स्वावलंबन, अनुशासन, आत्मविश्वास आदि का विकास होता है।
४. छात्रावास का छात्र सामाजिक क्षेत्र में प्रविष्ट होने की उत्तम शिक्षा पाता है। उसका संपर्क बहुधा अनेक प्रकार के छात्रों से होता रहता है। पारस्परिक सौहार्द एवं प्रेम-भाव बढ़ते हैं। जीवन स्वतंत्र और सुखमय होता है। विद्याध्ययन के दौरान घर की चिंताओं से मुक्त रहता है।
किंतु अब छात्रावास का जीवन अनेक दुर्गुणों का घर बनता जा रहा है। विद्यार्थी स्वच्छंदता का अनुचित लाभ उठाने लगा है। प्राय: देखने में आता है कि छात्र आधुनिक सभ्यता से प्रभावित होकर नाना प्रकार के व्यसनों का शिकार हो जाता है। यही कारण है कि दिन-प्रतिदिन छात्रावास का जीवन खर्चीला भी होता जा रहा है। यहाँ विलासिता और अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है।
जब हम आज के छात्रावास-जीवन पर दृष्टिपात करते हैं और प्राचीन गुरुकुलों की शिक्षा-पद्धति का तुलनात्मक दृष्टि से विचार करते हैं तो हमारे कान खड़े हो जाते हैं। क्या हम पुराने समय के गुरुकुलों की भाँति आचरण और अनुशासनबद्ध जीवन अपनाकर एक आदर्श विद्यार्थी बनने का गौरव प्राप्त नहीं कर सकते?
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