मेरा गाँव पर निबंध | Essay On My Village in Hindi

मेरा गाँव पर निबंध | Essay On My Village in Hindi

भारत को गाँवों का देश कहा जाता है। भारत में लगभग 60% लोग ग्रामीण जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसे ही अनेक गाँवों में से एक मेरा गाँव भी है। यह शहर से 2 किलोमीटर दूर पावर हाउस के किनारे स्थित है। नगर की हलचल एवं कोलाहल से दूर मेरा गाँव स्वच्छ और सुन्दर वातावरण में उन्नति की ओर अग्रसर हो रहा है। गांव में न तो ऊँची-ऊंथी चिमनियों का धुओं है और न ही लाउडस्पीकरों का शोर। खेतों की हरियाली, प्राकृतिक सौन्दर्य, गाँव के मन्दिर के अनोखे आकर्षण को देखकर लगभग हर ग्रामवासी मंत्रमुग्ध हो जाता है।

गाँवों में हमें कुछ वस्तुएँ ऐसी मिल जाती हैं जिनका शहर में मिलना सम्भव नहीं होता है। यदि मिलती भी हैं तो साफ सुथरी नहीं होती हैं। यहाँ साफ और बिना दवा लगा हुआ गेहूँ, गाय का शुद्ध दूध और घी, कुएँ का शुद्ध पानी इत्यादि ग्रामीण जीवन की ही देन है। गाँवों में शान्ति का वातावरण होता है जो अध्ययन के लिए वरदान है। गाँवों में बेईमानी, चोरी, लूट, कूटनीतिज्ञता, अनैतिकता, भ्रष्टाचार और हिंसा जैसी बुराइयों नहीं पायी जाती है। यहाँ के लोग शान्ति और भाई-चारे की भावना में पलते हैं। ग्रामीण जीवन पर भौतिकवाद का प्रभाव विल्कुल नहीं पड़ता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक वातावरण काफी आकर्षक होता है। फरवरी, मार्च में खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल ऐसे लगते हैं जैसे सोने की परत विष्ठी हो। तालाब में चन्द्रमा का प्रतिविम्ब ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने चाँदी बिखेर दी हो। हँसते-खेलते बादलों की छटा से कौन मोहित नहीं होता। वागों में कोयल की कक इस मशीनी संगीत से लाखों गुना अच्छी है। लहलहाती हुई फसलों के खेत दिल को छू लेते हैं। गाय के गोबर से लिपे-पुते हुए मकानों पर तोरई और लौकी की बेलें हदय को चुरा लेती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक संस्थाएँ चल रही हैं। गाँवों में गांधी आश्रम की शाखाएँ भी चल रही हैं जिसके अन्तर्गत अनेक महिलाओं को पर्या चलाने का काम मिल गया है। इसके अलावा गाँवों में एक सहकारी बैंक की शाखा भी है। जो किसानों को खाद-बीज उपलब्ध कराती है। प्रत्येक ग्राम सभा में यहाँ एक पंचायतघर भी है जो स्थानीय झगड़ों को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

वर्तमान मशीनी युग में प्रत्येक गाँवों में ट्रैक्टर हैं जिसके द्वारा कृषि से सम्बन्धित विभिन्न कार्य का संचालन बड़ी सुगमतापूर्वक किया जा रहा है। पहले तो दो बैलों को खेत में जोता जाता था, परन्तु नई सदी में यह नहीं है। हमारे पुराने गाँवों में ही पुराने युग की तरह इस नये युग में भी पंचायत बैठती है जो कि पूरे गाँव के फैसलों का निपटारा करती है। लगभग सभी ग्रामों का विद्युतीकरण हो चुका है जिससे सम्पूर्ण कार्य विद्युत् द्वारा ही सम्पन्न किया जा रहा है।

आज सभी गाँवों में एक प्राथमिक विद्यालय है जो गाँव के बच्चों को शिक्षा प्रदान करता है, परन्तु पिछले दो-तीन सालों में इस विद्यालय की स्थिति बहुत खराब हो गयी है। गाँव के बच्चे नगरों के स्कूलों में शिक्षा हेतु जाने लगे हैं। यहाँ के अध्यापक अपने कर्तव्यों को भूल गये हैं। वे निरन्तर गप-शप में अपना समय गवाते हैं और शिक्षा देने के सम्बन्ध में शून्य हो गये हैं। मेरे जिले के उच्च अधिकारी प्रष्ट हो गये हैं जो इस विद्यालय के निरीक्षण हेतु भी दर्शन नहीं देते हैं। गाँवों में अनेक कुरीतियों आज भी विद्यमान हैं।

अंधविश्वास ने तो हमारे गाँव की प्रगति की टॉग ही पकड़ रखी है। पंचायत व्यवस्था में पक्षपात और भेदभाव अनेक साम्प्रदायिक दंगों को जन्म देते हैं। इस पक्षपात की नीति से गरीब मर रहा है और अमीर उनका खून चूस रहा है। सरकारी कर्मचारी भी गाँव के भोले-भाले किसानों को ठगने लगे हैं। हमारे किसान अभी भी निरक्षर हैं जो कृषि में वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग नहीं कर सकते। पशुओं की चिकित्सा के लिए जो सरकारी कर्मचारी नियुक्त किये गये है, रिश्वत और भ्रष्टाचार के आदी हो गये हैं। चिकित्सा की कोई खास व्यवस्था नहीं है।

सरकार द्वारा ग्रामीणों का जीवन स्तर सुधारने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। नवीं पंचवर्षीय योजना का मुख्य लक्ष्य गरीबी उन्मूलन है जो हमारे गाँवों में ही सबसे अधिक है। कृषि उत्पादन की वृद्धि हेतु भी अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। किसानों की शिक्षा हेतु प्रौढ़ शिक्षा योजनाएं भी चलाई जा रही है। हम यह आशा करते है कि लगभग सभी ग्रामीणों का भविष्य उज्ज्वल होगा।

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