भारतीय समाज में नारी का स्थान हिंदी निबंध

भारतीय समाज में नारी का स्थान

भारतीय समाज में नारियों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यहाँ वह देवी के रूप में पूज्यनीय हैं। समाज में नारी के विभिन्न स्वरूप हैं, कहीं वह माँ के रूप में पूज्यनीय है, तो कहीं बहन के रूप में ममतामयी है। पत्नी के रूप में ‘दायाँ हाथ’ हैं और कामिनी के रूप में ‘विष की पुड़िया’ है। नारी के ये चारों ही रूप आज हमें देखने को मिल रहे हैं।

नारी के सन्दर्भ में मनु ने लिखा है कि ‘जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। भारत सदा स्त्रियों का सम्मान करता रहा है। प्राचीन काल में नारी के बिना कोई भी यज्ञ संपन्न नहीं होता था। परन्तु मध्य युग में नारियों की स्थिति काफी शोचनीय हो गयी थी। वह घर की चहारदीवारी में बन्द हो गयी। मुसलमानों ने उसे बुर्के के पीछे ढक दिया। रसोई में खाना बनाना व घर का काम करना तथा शृंगार ही उसकी जिन्दगी का हिस्सा बन गये। उसका शिक्षा से सम्बन्ध टूट गया। वह पुरुष की भोग्या बन कर रह गयी। मध्यकाल में नारी के बहन, माँ, पत्नी के रूप खतरे में पड़ गये। बस ‘कामिनी’ रूप ही फल-फूल रहा था। अकबर के महल में चार हज़ार सुन्दरियाँ थीं। दूसरे मुगल बादशाह भी सैकड़ों की संख्या में स्त्रियाँ रखते थे।

हालाँकि ब्रिटिश भारत में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार आया। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने की छूट मिली तथा बाल-विवाह और सती प्रथा बन्द हो गयी। विधवा-विवाह शुरू हुए। इन सुधारों से समाज में नारी का महत्त्व बढ़ा तथा उसका खोया हुआ सम्मान वापस लौट आया। इससे एक कदम बढ़कर उसने नौकरी और व्यवसाय के क्षेत्र में कदम रखा। फलस्वरूप वह आत्मनिर्भर होने लगी। अब वह पत्नी ही नहीं ‘चिरसंगिनी’ और पुरुष की ‘जीवन-साथी’ कहलाने लगी।

पहले की अपेक्षा आज की महिलाएँ स्वतन्त्र एवं सम्मान-पूर्वक अपना जीवन गुजार रहीं हैं। भारतीय संविधान में यह स्पष्ट शब्दों में वर्णित है कि भारत में लिंग-भेद के कारण किसी को कोई विशेष या कम स्थान नहीं होगा। परन्तु समाज की परम्पराएँ धीरे-धीरे ही बदलती हैं। पुरुष आज भी नारी को अपने हाथों की कठपुतली बना कर रखना चाहता है।

हमारे समाज में आज भी स्त्रियों की दशा में व्यापक बदलाव नहीं आया है। नारी पुरुषों के बंधन में जीवन गुजार रही हैं। मुस्लिम समाज तो मानो मध्ययुग में ही जीना चाहता है। अभी भी मुस्लिम युवक तीन बार तलाक कहकर नारी को सड़क पर खड़ा कर देने से नहीं चूकते। अतः नियमों पर कड़ा प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।

विशेष तौर पर पुरुषों की प्रधानता होने के कारण दस्तावेजी अधिकार रहते हुए भी नारी समाज खुद को मजबूर समझती है। पुरुष-समाज पग-पग पर उसके मार्ग में रोड़े अटकाता है। यही सोचकर राजनीति में नारी को आरक्षण देने की बातें उठीं। आज नारी शोषित है। वह आठ घण्टे ऑफिस का काम करने के बावजूद घर का पूरा काम करती है। वह आराम से जीने की बात सोचती भी नहीं। शायद एक दिन वह भी एक सम्मानजनक ढंग से जिंदगी जीने की आकांक्षा पूरा कर सकेगी।

और पढ़ें : मेरा गाँव निबंध हिंदी

Leave a Comment